Thursday, July 12, 2018

मुनाफिक़ और क़ुर्आन


   
कुफ्र की किस्में - इसकी 2 किस्में हैं असली व मुर्तद

1- असली  वो जो शुरू से काफिर और कल्मए इस्लाम का मुनकिर है,इसकी भी 2 किस्में हैं मुजाहिर व मुनाफिक़मुजाहिर की भी 4 किस्में हैं


दहरिया - ये खुदा का ही मुनकिर है

मुशरिक - अल्लाह के सिवा बुतों को अपना मअबूद समझना और किसी और की इबादत करना जैसे हिन्दू व आर्य वग़ैरह

मजूसी - आग की पूजा करने वाले

किताबी - यहूद व नसारा

दहरिया व मुश्रिक व मजूसी का ज़बीहा हराम और उनकी औरतों से निकाह बातिल जबकि किताबी से निकाह हो जायेगा मगर मना है



2 - मुर्तद - वो जो मुसलमान होकर कुफ्र करे इसकी भी 2 किस्में हैंमुजाहिर व मुनाफिक़




मुर्तद मुजाहिर - वो जो मुसलमान था मगर अलल ऐलान इस्लाम से फिर कर काफिर हो गया यानि दहरिया या मुश्रिक या मजूसी या किताबी हो गया

मुर्तद मुनाफिक़ - वो जो अब भी कल्मा पढ़ता है और अपने आपको मुसलमान कहता है मगर खुदा व रसूल की शान में गुस्ताखी करता है और ज़रूरियाते दीन का इन्कार करता है जैसे कि वहाबीदेवबंदीक़ादियानीखारिजीराफजी यानि शियाअहले हदीसजमाते इस्लामी यानि मौदूदवी और भी बदमज़हब फिरके हैंहुक्मे दुनिया में सबसे बदतर मुर्तद हैं इनसे जुज़िया नहीं लिया जा सकता इनका निकाह दुनिया में किसी से नहीं हो सकता ना मुसलमान से ना काफिर से ना मुर्तद से ना इनके हम मज़हब गर्ज़ कि किसी हैवान से भी नहीं हो सकता जिससे भी होगा ज़िना खालिस होगाये काफिर की सबसे बदतर किस्म है इसकी सोहबत हज़ार काफिरों की सोहबत से भी ज़्यादा खतरनाक है क्योंकि ये मुसलमान बनकर कुफ्र सिखाता है
 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 111



वैसे तो क़ुर्आन में मुनाफिक़ों के बारे में बेशुमार आयतें नाज़िल हुई हैं मगर सबका ज़िक्र ना करके सिर्फ उन आयतों को पेश करता हूं जिनमें उनकी इबादत उनके एहकाम और उनका हश्र बयान हुआ होमुलाहज़ा फरमायें



कंज़ुल ईमान - और वो जो खर्च करते हैं उनका क़ुबूल होना बन्द ना हुआ मगर इसलिये कि वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से
 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 54



आज जो लोग वहाबियों की नमाज़ और उनके सदक़ात और उनकी मिसाल देकर लोगों को समझाा करते हैं कि देखो ये लोग कितने मुत्तक़ी हैं तो वो इस आयत को बग़ौर पढ़ेंइसमें मौला तआला ने साफ फरमा दिया कि कुछ लोग नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर दिल से नहीं बल्कि दिखावे के तौर पर पढ़ते हैं और जो खर्च करते हैं यानि ज़कातो फित्रा वगैरह वो भी मजबूरी और नागवारी से खर्च करते हैं और उनकी कोई इबादत हरगिज़ क़ुबूल नहीं

कंज़ुल ईमान - और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई नुक्सान पहुंचाने को और कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफरक़ा डालने को और उसके इंतेज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुखालिफ हैऔर वो ज़रूर कसमें खायेंगे हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है कि वो बेशक झूठे हैं. उस मस्जिद में तुम कभी खड़े ना होना...

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