किसी नये काम को शुरु करने से पहले इस्तेख़ारा करना चाहिए, इस्तेखा़रा उस अमल को कहते है जिसके करने से ग़ैबी तौर पर यह माअ़लूम हो जाता है के फु़ंला काम करने मे फ़ायदा है या नुक़सान ।
अगर वह काम आपके लिये अच्छा है तो इस्तेखारा की बरकत से गैब से असबाब पैदा हो जाते है! और अगर वह काम आपके लिये बेहतर नही है तो कुदरती तौर पर इंसान इस काम से रुका रहता है!
इस्तेखा़रा और "शगून" में
बहुत फ़र्क़ है इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और
उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। जबकि शगून जादूगरो, छू- छा करने वाले, सितारों से, परिन्दो से, सिफ्ली इल्म जानने वालो से, नुजूमीयो से
ज्योतिषीयों, वगै़रह , और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरिए लेते हैं।
इसी तरह जादुगर, नुजुमी ज्योतिषी और सिफली इल्म जानने वालो के
पास आगे पेश होने वाले हालात जानने के लिये जाना और उनकी बातो पर यकीन करना कुफ्र
है!
हदीस :-.सरकारे मद़ीना ﷺ ने
इरशाद फरमाया-
जो किसी काहीन (भवीष्य बताने वाला) के
पास जाए और उसकी बात सच्ची समझे तो वह काफीर हुआ उस चिज से जो मुहम्मद मुस्तफा ﷺ पर
नाजील हुई!
और फरमाते है नबी
ए करीम ﷺ
जो किसी काहिन के पास जाए और उससे कोई
गैब की बात पुछे, तो उसकी चालीस
दिन तौबा कबुल ना हो! और काहीन की बात पर यकीन रखे तो काफीर हो गया!
फतावा तारखानीया
मे है!
जो कहे मै छिपी हुई चिजो को जान लेता हू,
या जिन्न के बताने से बता
देता हु, तो वह काफीर है!
इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में
अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है यह रसूलुल्लाह ﷺ, सहाबाए किराम और बुजु़र्गाने दीन का तरीक़ा है.
हदीस :- हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह [ रदिअल्लाहु
तआला अन्हु] रिवायत करते हैं-
रसूलुल्लाह ﷺ हमें हर काम में हमें
इस्तेखा़रा की तलक़ीन फ़रमाते थे जैसे क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते"
हदीस :- सरकारे मदिना ﷺ ने इरशाद फरमाया,,,
"अल्लाह तआला ने इस्तेखा़रा करना औलादें आदम इन्सानो की ख़ुशबख़्ती है और
इस्तेखा़रा न करना बद बख़्ती है".
इस्तेखा़रा किसी भी नये काम को शुरू करने
से पहले करना चाहिये जैसे नया कारोबार शुरू करना हो, नया मकान बनानाया ख़रीदना हो, किसी सफ़र पर जाना हो, या कोई नयी चीज़ ख़रीदना है, वगैरह वगैरह इन सब
में नुकसान होगा या फ़ायदा यह जानने के लिए इस्तेखा़रा का अ़मल किया जाना
चाहिए.
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