20 रमज़ानुल मुबारक वो मुक़दस
तरीक है जिस दिन नब्बी ए अकरम (صلی
الله علیہ وسلم) और आप के जलीलुल क़दर सहाबा (رضوان الله تعالیٰ علیهم اجمعين) ने मक्का सरीफ को कुफार के कब्जे से आज़ाद करवाया,
काबा सरीफ जिस हज़रत ए इब्राहीम (علیہ السلام) ने अल्लाह वह्द्दहू ला शरीक की इबादत के लिए तामीर किया था, उस मा आब घर में कुफार ए मक्का ने 360 भूतो को सजाया हुआ था, वो तमाम के तमाम झूटे और फर्जी खुदा आज के दिन धुल चाट रहे थे,
काबा सरीफ जिस हज़रत ए इब्राहीम (علیہ السلام) ने अल्लाह वह्द्दहू ला शरीक की इबादत के लिए तामीर किया था, उस मा आब घर में कुफार ए मक्का ने 360 भूतो को सजाया हुआ था, वो तमाम के तमाम झूटे और फर्जी खुदा आज के दिन धुल चाट रहे थे,
सुलह हदाइबिया में एक अहम्
पॉइंट ये था की मुसलमान और कुफार के 10 साल तक एक जंग नही करेंगे और दीगर अरब काबाइल
दोनों पार्टीज में से किसी से भी दोस्ती रख सकते है, लेकिन 22 महीने बाद ही कुफार
ने हदाइबिया पैक्ट तोड़ दिया और बनू खाजा (
या वो कबीला था जो नबी ए पाक की दोस्ती में था) के अफ्राफ को बेदर्दी के साथ क़त्ल
किया, यंहा तक की वो लोग भागते हुवे हुदूद
ए हरम में दाखिल हो गए, लेकिन उन बद्खातुनो ने हरम का भी लिहाज नही किया और वंहा
भी क़त्लो घर्त करते रहे,
{यह बात जब नबी ए करीम (علیہ السلام) को मालूम हुआ तो अपने एक वफाद मक्का भेजा और
कुफार के सामने ३ बाते रखी}
1.
बनू खाजा के मारे गए अफराद
की देत ( खून की कीमत) अदा करे.
2.
जिस काबिले ने बनू खाजा पर
हमला किया उस के साथ दोस्ती का पैक्ट ख़त्म
करे,
3.
हदाइबिया पैक्ट को एलानिया
तौर पर ख़त्म कर दे,
कुफार ने तीसरी बात को choose
किया और मक्तूलो के खून की कीमत अदा करने से इनकार कर दिया.
सुलह हदाइबिया के बाद अहले
इस्लाम को मक्का में आमद ओ रफत हासिल हो चुकी थी और दुसरे मुसरीक काबाइल में भी वो आने जाने लगा. बोहत से दिल जो कुफार
की ज़ुल्मतों में डूबे हुवे थे. वो इस्लाम के नूर से जगमगाने लगा. अब अहले मक्का के
दिलो में अपना भूतो की खुदाई को बचने के लिए जोश ओ खरोश में दम तोड़ चूका था. मक्का
की आबादी का काफी हिस्सा हल्का ए इस्लाम में दाखिल हो चूका था. अबू जहल की दबंग
कियाद्त के बजाये अबू सुफियान की कमज़ोर और बेजान कियाद्त ने जगह ले ली थी.
अब मक्का पर चढ़ाई करने में
मुसलमानों को किसी बड़े जोखिम का अंदेशा ना था. इस्लामी लश्कर की तादाद 2000 से
3000 होती, तब भी वो बा-आसानी मक्का पर सतेह हासिल कर लेते, लेकिन सर्वार ए आलम (صلی الله علیہ وسلم) ने इस मुहीम के लिए इस क़दर तयारी फरमाई की आज
तक किसी जंग के लिए नही फरमाई थी. ना
सिर्फ तमाम मुहजिरीन और अंसार को इस्लामी लश्कर में शरीक होने का हुक्म दिया बल्कि
मदीने शरीफ के बाहर जो काबाइल आबाद थे, उनमे जिन खुशनसीबो ने इस्लाम कबूल किया था.
उनको भी ताकीदी हुक्म भेजा की वो सब माह ए रमजान में मदीना तय्यिबा हाज़िर हो जाए,
इस गैर मामूली तेयारी का
मकसद यह था की इस जंग में नाकामी का चांस भी ना रहे, काईद ए लश्कर ए इस्लाम (علیہ افضل الصلوات) कुफारो शिर्क के मरकज़ पर हर सूरत में क़ब्ज़ा करना
चाहते थे ताकि ये जंग कुफार के साथ आखिरी
और फैसला कुन साबित हो. इस मुहीम का मकसद यह थे की. अल्लाह ताअला के मुक़द्दस घर को
भूतो की नजसत से हमेशा के लिए पर कर दिया जाये ताकि इन्शान सिर्फ अल्लाह वह्धू ला
शरीक की ज़ात ए बे-हमता के सामने सजदा-रेज़ हो,
10000 की तादाद में लस्कर ए
इस्लमा ने मक्का से पहले एक वादी में अपना कैंप लगाया. हुजुर ने हर कैंप के सामने
आग जलने का हुकम दिया, रात के अँधेरे में ये वैसे मदीना जगमगा उठा, लशकर ए इस्लाम
की शान देखते ही बनती थी, कुफार इस लस्कर ए जर्रार को देख कर हिम्मत हार गया. लस्कर
ए इस्लाम की नुमाइश का मकशद यह था की दुश्मन मरूब हो जाये और जंग करने का ख्याल भी
इसके दिल से निकल जाये. न जंग की नौबत
आएगी, ना क़त्ल ए आम होगा, ना खून के दरया
बहेंगे ना ही जंग में परिवार अपने
अकाबिरीन के लुकमा ए अजल बन्ने से वीरान
ओ बर्बाद होंगी,
नबी ए करीम और आपके सहाबा जब
मक्का में दाखिल हुवे तो कुफार को अपनी ज़िन्दगी का डूबता सूरज लगा. उन जालिमो को
अपना वो जुल्म याद आ रहे थे जो उन्होंने
आका ए करीम और मुसलमानों पर किये थे, मगर रहमत ए आलम (صلی الله علیہ وسلم) ने उन्हें माफ़ कर दिया, ये वो दिन थे जब हमारे
नबी बदला ले सकते थे, लेकिन आप ने ऐसा नही किया. और जालिमो को माफ़ कर दिया
जिन्होंने ने आपकी प्यारी बेटी हज़रत ए रुकय्या (رضی الله تعالیٰ عنہ) को हिज़रत के दोरान ऊंट से गिरा था जिसकी वजह से आपका हमल
सकित हो गया था और फिर कुछ वक़्त बीमार रह कर आपका विशाल हो गया.
अल्लाह ताअला हमे अपने आका
ओ मौला (صلی الله تعالیٰ علیہ وسلم) के बहरे जूद ओ करम से
हमेशा मुस्त्फीज़ होने की तौफिक आता फरमाए और उस शौक ए फर्वान से नवाज़े जो उसने
अपने हबीब के सहाबा ए किराम और काम्लिने ए उम्मत को आता फरमाया.
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