Saturday, July 14, 2018

इस्लाम में सगुन को कैसा माना गया है.


         
     इस्तेखा़रा और "शगून" में बहुत फ़र्क़ है इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। जबकि शगून जादूगरो, छू- छा करने वाले, सितारों से, परिन्दो से, सिफ्ली इल्म जानने वालो से,  नुजूमीयो से  ज्योतिषीयों, वगै़रह , और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरिए लेते हैं।

       

         इसी तरह शगुन लेना शरीयत ए इस्लामी मे शिर्क बताया गया है! शिर्क करने वाला हमेशा हमेशा जहन्नम मे रहेंगा!


    हदिस:- हजरत इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने रसुल ए करीम का यह इरशाद बयान किया है!

    
     "शगुन लेना शिर्क है, शगुन लेना शिर्क है, अगरचे अक्सर लोग शगुन लेते है!
 मिश्कात शरीफ, जिल्द नं २, हदिस नं ४३८०



"तबरानी" ने हजरत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हु के हवाले से लिखा है!

       "शगुन लेना शिर्क शिर्क है, और यह अल्फाज तिन मरतबा अदा किये! फिर कहा " सफर को जाने वाला किसी शगुन की वजह से लौट आए तो उसने हुजुर पर नाजील शुदा अहकाम ए इलाही याने (कुरआन ए करीम) का इंकार किया! (तबरानी शरीफ)


    "रिवायत है के जो शख्स किसी शगुन की  रु (वजह) से अपना काम न कर सका तो यकीनन उसने शिर्क किया!
 मा सबता बिसुन्नह फी अय्यामिन सुन्नह सफा नं ६३


     इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है यह रसूलुल्लाह , सहाबाए किराम और बुजु़र्गाने दीन का तरीक़ा है.



हदीस:- हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह [ रदिअल्लाहु तआला अन्हु] रिवायत करते हैं-

      रसूलुल्लाह हमें हर काम में हमें इस्तेखा़रा की तलक़ीन फ़रमाते थे जैसे क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते"
बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 455, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 292,


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