एक रात उस बच्चे
को बेचैनी की वजह से नींद नही आई!
उस के बाप ने पूछा: "प्यारे बेटे, क्या कहीं तक्लीफ़ हैं"?
बच्चे ने अ़र्ज़ की: "नही, लेकीन कल जुमारात हैं जिस में पूरे हफ़्ते के दौरान पढ़ाए
जाने वाले अस्बाक़ का इम्तिहान होता हैं, मुझे ये ख़ौफ़ खाए जा रहा हैं कि अगर मैने सबक़ सह़ी नही सुनाया तो उस्ताज़
साह़िब मुझ से नाराज़ होंगे और सज़ा देंगे"!
ये सुन कर उस शख़्स ने ज़ोर से चीख़ मारी और अपने सर पर
मिट्टी ड़ाल कर रोने लगा और कहने लगा: "मुझे इस बच्चे से ज़्यादा ख़ौफ़ज़दा
होना चाहिए कि कल क़यामत के दिन मुझे दुनिया में किए गए गुनाहों का ह़िसाब अपने रब
عَزَّ وَجَلّ की बारगाह में देना
हैं"!
(ख़ौफ़े खुदा, सफ़ह़ा-86,87)
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प्यारे इस्लामी भाईयों और इस्लामी बहनों, हम रोज़ खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं जागते
हैं, मगर हम जिसकी दी हुई
नेमतों को खा रहे हैं पी रहे हैं क्या कभी उसका शुक्र अदा किया?
हम रात दिन जिन
जिन चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं वो तमाम अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ की दी हुई नेमतें हैं, बल्कि हमारा सांस लेना भी हमारे लिए नेमत हैं,
ये हवाएं, बरसात, रौशनी, अन्धेरा तमाम नेमतें हैं जिनसे हम फ़ाएदा
ह़ासिल करते हैं!
मगर अफ़्सोस कि
हम अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ की बेशुमार नेमतों का
फ़ाएदा उठाते हैं मगर कभी उसकी बारगाह में अपने सर को नही झुकाते!
हमारा क्या बनेगा?
➡एक मजदूर भी ये
जानता हैं कि जब तक मालिक या सेठ का काम पूरा नही करुंगा तब तक वो मजदूरी नही देगा
उसी त़रह़ अगर कोई मजदूर निकम्मा बैठा रहे और तनख़्वाह भी बराबर लेता रहे तो उसका
मालिक उसे यही कहेगा कि "ह़राम की खा रहा हैं"!
➡ह़ज़रते ख़्वाजा
मुई़नुद्दीन चिश्ती सन्जरी अजमेरी رَحٔمَةُاللّٰهِ تَعَالٰى عَلَئهِ का एक क़ौल मुबारक हैं:
"जो शख़्स इ़बादत नही करता गोया कि वो ह़राम रोज़ी खाता
हैं"!
(कश्फु़ल अरवाह़)
आमीन
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